उड़ आसमानो में

मेरी कलम से...


उड़ आसमानो में,
ख़्वाबों के पंख लिए
लड़ता रह इन हवाओं से,
जब तक भी तू जिए
रोकेंगे राह तेरी
तोड़ेंगे चाह तेरी
चूम उन उचाईयूं को,
बिना किसी की परवाह किये
उड़ आसमानो में,
ख़्वाबों के पंख लिए
आँधियों से न तू डर
कर तूफानों की न फिकर
दो पल में ये थम जाएंगे,
नया एक लक्ष्य छोड़ जाएंगे
रख खुद को तयार,
हर मंजर के लिए
उड़ आसमानो में,
ख़्वाबों के पंख लिए
लंबी तू उड़ान भर
मंजिल हर आसान कर
आग जो उठी है दिल में,
कर रोशन चाहत के दिए
उड़ आसमानो में,
ख़्वाबों के पंख लिए
लड़ता रह इन हवाओं से,
जब तक भी तू जिए
20160913_142614

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कुछ कहना चाहते हो क्या !!

कह भी दो !! जो भी दिल में हो, चुप चुप से क्यों रहते हो !!
Posting after so long, good to be back. Looking forward to post new Poems very soon. ThankYou all for supporting always 🙂

मेरी कलम से...


चुप-चुप से रहते हो
कुछ कहना चाहते हो क्या !!
मुस्कुराते रहते हो
कोई दर्द छिपाते हो क्या !!
आँखें तुम्हारी उदास-उदास क्यों हैं?
ग़मों की धूल जमी है क्या !!
बहने भी दो इनको,
आँसूं बचाते हो क्या !!
चुप चुप से रहते हो
कुछ कहना चाहते हो क्या !!
समझेंगे जज्बात तुम्हारे,
बैठो कभी पास हमारे
जान जाऊंगा राज सारे !!
इसलिए घबराते हो क्या ?

चुप चुप से रहते हो
कुछ कहना चाहते हो क्या !!

20160913_142614


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दोराहें


दोराहे पर हूँ खड़ा
इस सोच में हूँ पड़ा
राह कौन सी जाऊँ मै ।
किस ओर पाँव बढाऊँ मै
एक तरफ हैं कंकड़ काँटें,
एक तरफ फुलवारी है !!
एक तरफ है ग़म के बादल,
एक तरफ खुशहाली है !!
अब खुदको क्या समझाऊँ मै,
राह कौन सी जाऊँ मै ।।
एक तरफ है उगता सूरज,
एक तरफ परछाई है !!
एक तरफ है झूटी दुनिया,
एक तरफ सच्चाई है !!
कहीं खो न जाऊँ इस जाल में कैसे मंजिल पाऊँ मै,
किस ओर कदम उठाऊं मै
राह कौन सी जाऊं मै ।।।


ख्वाबों के पन्नों पर…


ख्वाबों के पन्नों पर लिख रहा हूँ कविता

ख्वाबों के पन्नों पर लिख रहा हूँ कविता ।।

जाग जाऊं अगर तो पढलेना…

यादें शब्द हैं, ज़ज़्बात हैं अक्शर

समझ सको तो समझ लेना…

जाग जाऊं अगर तो पढलेना ।।

वो पन्नें थोड़े खुरदुरे हैं, थोड़े मुड़े

हो सके तो संजोलेना..

जाग जाऊं अगर तो पढलेना ।।

ज़मीन शुरुआत है, आसमान हैं अंत

चाँद सूरज क्या तारे हैं अनगिनत

गिन सको तो गिन लेना…

जाग जाऊं अगर तो पढलेना ।।

यह ख्वाब न पूरा था न हुआ

छोड़ रहा हूं अधूरा,

कर सको पूरा तो करदेना…

ख्वाबों के पन्नों पर लिख रहा हूं कविता…

जाग जाऊं अगर तो पढलेना।।


हूँ मैं उदास ये किसने कहा ।।


न कुछ पाने को है….
न कुछ खोने को रहा…
हूँ मैं उदास ये किसने कहा ।।
जीने को साँसे हैं, कहने को यादें
आज तुम कहीं मैं कहाँ…
हूँ मैं उदास ये किसने कहा ।।
फूल थे खिले, कांटें थे कहीं…
रास्ता था कठिन, सफर था जवां
मंजिल थी कहीं और हम चल दिए कहाँ…
न कुछ पाने को है…
न कुछ खोने को रहा…
हूँ मैं उदास ये किसने कहा ।।

अब कोई नहीं रहता !!


मेरे दिल में…
अब कोई नहीं रहता !!
दस्तकें होती हैं, लेकिन
चुप ये रहता है,
ये उनसे कुछ नहीं कहता…
मेरे दिल में अब कोई नहीं रहता !!
खामोशी वहां रहती है,
जहाँ शोर था कभी मचता…
खुशियां बहती थीं पहले तो,
बस अब सिर्फ खून है बहता…
मेरे दिल में अब कोई नहीं रहता !!
दीवारें अब मैली हैं…
यादों की धूल जो फैली है…
कमजोर नहीं था दिल मेरा भी !!
पर कबतक वो यूँही सहता !!
मेरे दिल में अब कोई नहीं रहता !!
अँधेरे ही अँधेरे अब दिखने लगे हैं,
क़दमों के निशाँ थे जो, अब मिटने लगें हैं…
चहल-पहल रहती पहले तो !!
अब क्यों !! आहत से भी है डरता ??
मेरे दिल में अब कोई नहीं रहता !!
मेरे दिल में…
अब कोई नहीं रहता !!
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मुझे शौक था !!


जल गया खुद ही ख़्वाबों में अपने…
मुझे अंगारों से खेलने का शौक था !!
लूट गया खुद ही मोहब्बत में अपनी…
मुझे तुमसे दिल लगाने का शौक था !!
न मुकाम का पता था, ना अंजाम मालुम था !!
चलपड़ा था मै तो यूँही राहों पर…
मुझे सफर में खोजाने का शौक था !!
जमीन हूँ मै, आसमान तुम हो
काट ही लिए हवाओं ने पंख मेरे,
मुझे ऊँची उड़ान भरने का शौक था !!
निकला था मै तो साहिल पाने को \
बीच मझदार डूब गयी कश्ती मेरी,
मुझे लहरों से खेलने का शौक था !!
मालुम था मुझे की राहें जुदा है अपनी
क्या पता किस मोड़ पे मिलजाते तुम
मुझे किस्मत आजमाने का शौक था !!
जल गया खुद ही ख़्वाबों में अपने…
मुझे अंगारों से खेलने का शौक था !!
मुझे !! तुमसे दिल लगाने का शौक था…

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फिर से सोच जरा

मेरी कलम से...


क्यों भागता है तू, सबके ख़्वाबों के पीछे
तूने भी तो देखे थे कुछ ख्वाब, लक्ष्यों को खींचे
कहीं भटक तो नही गया तू, सबको खुश करने में?
या चुन लिए वो रास्ते जो सरल थे चलने में?

जरा पूछ खुदसे क्या यही थे ख्वाब तेरे !!

सबसे दूर है तू, केवल दौलत है पास तेरे?
रुक, ठहर, सोच जरा
ये दिन चिंताओं से क्यों है भरा
पा तो लिया सबकुछ तूने,
फिर भी क्यों है तू डरा डरा ? 
शायद नही यह राह वो मंजिल पाने की,
फिर से सोच जरा
फिर से सोच जरा
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Think, Once Again!!

Translation By:
Ritika Sinha 14470703_1254754097878862_1054506418_n
Why are you running at the rear of someone’s dream?
When hearty eyes of your’s had a strong goal scream!
In the cognizant of world’s glee, you cast away from your trance?
Else you walked for the smooth footpath chance!
Ask the vital soul within,

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तुम थे !!


लम्हे वो प्यार के जिए थे जो, वजह तुम थे !!
ख्वाब जन्नत के सजाये थे जो, वजह तुम थे !!
दिल का करार तुम थे,
रूह की पुकार तुम थे…
मेरे जीने की वजह तुम थे !!
लबों पे हँसी थी जो , वजह तुम थे !!

आँखों में नमी थी जो, वजह तुम थे !!
रातों की नींद तुम थे,
दिन का चैन तुम थे…
मांगी थी जो रब से वो दुआ तुम थे !!
मेरी दीवानगी तुम थे,
मेरी आवारगी तुम थे…
बनाया मुझे शायर,
वो शायरी तुम थे !!
तुम थे तो हम थे,
मेरी जिंदगी तुम थे !!
ज़िन्दगी !! यूँ तो न थी 
तेरे आने से पहले
तेरे जाने के बाद
तुम थे तो ये शामें थी
जिसमे हम चाहत के पंख लगाए, 
आसमानो में उड़ते थे
दीवानगी !! यूँ तो न थी
तेरे आने से पहले 
तेरे जाने के बाद
तुम थे तो ये यादें थी !!
जिसमे हम तुम खोए हुए, 
ख्वाब सजाया करते थे
आवारगी !! यूँ तो न थी
तेरे आने से पहले 
तेरे जाने के बाद 
तुम थे तो ये रातें थी !!
जिसमे हम चांदनी में नहाये, 
तारों की सैर किया करते थे
सादगी !!यूँ तो न थी
तेरे आने से पहले 
तेरे जाने के बाद 
तुम थे तो वो बातें थी !!
जिसमे में हम हस्ते हुए,
खो जाया करते थे
मैं यूँ तो न था
तेरे आने से पहले
तेरे जाने के बाद
एक शाम वो थी, एक शाम ये है
ये हवाएं तब भी थी, ये घटायें तब भी थी
फर्क सिर्क इतना है
तब तुम थे !!!
एक रात वो थी, एक रात ये है
ये ख़ामोशी तब भी थी, ये चांदनी तब भी थी
फर्क सिर्क इतना है
चाँद तब तुम थे !!!
वो दिन भी थे जो बीत गए जो बीते थे साथ तेरे
अब तुम नही तो कुछ नही और क्या होगा साथ मेरे
ख्वाब ख्वाब में ख्वाब सजाकर ख्वाब जो मैंने देखे थे
वो ख्वाब सारे टूट गए, पल वो सारे रूठ गए
और मैं… अब ये सोचता हूँ
एक वो वक़्त था, एक ये वक़्त है
ये जुदाई तब न थी, ये तन्हाई तब न थी
हाँ तब तो हम खुश थे !! साथ मेरे…
जब तुम थे !!!
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ख्वाबों की दुनिया

मेरी कलम से...


ख़्वाबों में जो देखि थी दुनिया,
वो दुनिया कितनी हसीन थी
शांति थी चारो ओर
खुशियां ही हर जगह बिखरी थी
न थे ये सीमायों के मसले,
न थे ये धर्मो के संकट,
मुस्कान हर चेहरे पर खिली थी
ख़्वाबों में जो देखि थी दुनिया
वो दुनिया कितनी हसीन थी
न थे ये शोर शराबे,
न थे ये खून खराबे,  
इंसानो के दिलो में इंसानियत दिखी थी
ख़्वाबों में जो देखि थी दुनिया
वो दुनिया कितने हसीन थी
मगर ये दुनिया !!
ये दुनिया हिन्दू-मुसलमान की,
ये दुनिया भारत-पाकिस्तान की,
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है !!
ये दुनिया तो न थी उन ख़्वाबों में
यहाँ तो हर रोज जवान मरते हैं,
यहाँ तो इंसान ही इंसानो से डरते हैं
न कभी उन ख़्वाबों के टूटने की उम्मीद थी
ख़्वाबों में जो देखि थी दुनिया,
वो दुनिया कितनी हसीन थी
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International Day of Peace
21 September

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